Monday, November 30, 2009

श्री सुक्त्तम



ये श्री लक्ष्मी यन्त्र हैतांबा या चांदी पर बने श्रीयंत्र की गुरु के द्वारा बतलाई विधि से शुभ मुहूर्त में पूजा और प्राण प्रतिष्ठा करेंश्री सूक्तं या पुरूष सूक्तं की सोलह ऋचाओं द्वारा प्रतिदिन निश्चित समय पर षोडशोपचार अथवा पंचोपचार से पूजन करेंजप का पुर्श्चरन करके ( कामना के अनुसार गोघृत,कमल-पुष्पा,बिल्वाफलः,कदम्बफल, चम्पक पुष्प, दूर्वा,खीर तथा पंच मेवा आदि वास्तु से ) हवन करें

लाभ तथा उपयोग
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लाल स्याही से ग्यारह बार कागज पर शुभ मुहर्त में लिखने का अभ्यास करें२१ दिन बाद किसी भी मॉस की संक्रांति के दिन अष्टगंध से भेजपत्र पर लिखकर उसे शीशे में मढ़ा लेंपश्चात् प्रतिदिन उसका पंचोपचार पूजन तथा दर्शन करने से संकट दूर होता है और कक्स्मी की प्राप्ति एवं सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं

श्री ऋग्वेदो श्रीसूक्तं
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संकल्प :- देशकालौ संकीर्त्य मम सकुटुम्बस्य सपरिवारस्य नित्य-कल्याण प्राप्त्यर्थं -लक्ष्मीविनाशपूर्वकामानो भिलाषित विपुल लक्ष्मी प्रप्त्यर्थ सर्वदा मम गृहे लक्ष्मी निवासार्थ श्री महा लक्ष्मी देव्याः प्रीत्यर्थं श्री सूक्तं पाठ्महम करिष्ये

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हिरण्यवर्णा हरिणी सुवर्णरजतस्त्र्जाम
चंद्रा हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदी मा वह

तां
वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम
यस्याहं हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरूषानहम

अश्वापूर्वा
रथमध्यां हस्तिनाद प्रमोदिनीम
श्रियं देविमुप ह्विये श्रीर्मा देवी जुषताम

का
सोस्मिताम हिरण्यप्रकार्माद्रा ज्वालान्तीम तृप्तां तर्पयन्तीम
पद्मे स्थितां पद्मवर्णा तामिहोप ह्वैये श्रियं॥४॥

चन्द्रम प्रभासां यशसा ज्वलन्ती श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम।
तां पद्मिनिमीम शरणम प्र पद्ये ऽअलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे॥ ५॥

आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षों ऽथ विलावः ।
तस्य फलानी तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्रव ब्रम्ह्या अलक्ष्मीः॥ ६॥

उपैतू मां देवासखा कीर्तिश्चा माणिना सह ।
प्रदुभूर्तोऽसमिन राष्ट्रे
स्मि कीर्तिमृध्दि ददातु में ॥७॥


क्षुत्पीपासामलां ज्येष्टामलक्ष्मीं नाश्याम्यहम।
अभूतिमसमृध्दि च सर्वा निर्णुद में गृहात॥८॥

गंधद्वारा दुराधर्षा नित्य पुष्टां करीषिणीम।
ईश्वरी सर्वभूतानाम तमिहिप ह्वये श्रियं ॥९॥

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्न्स्य मयि श्रीः श्रयतां यशः॥१०॥

कर्दमें प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय में कुले मातरं पद्मालिनीम॥११॥

आप सृजन्तु स्निग्धानी चिक्लीत वस् में गहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय में कुले॥१२॥

आद्रा पुष्करिणी पुष्टि पिड.गलां पद्मालिनीम।
चंद्रा
हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आ वह॥ १३॥


आद्रा यःकारिणी यष्टि सुवर्ण हेमामालिनीम ।
सुर्याँ हिरण्मयीं लक्ष्मी जातवेदो म आ वह॥ १४॥

तां म आ वह जातवेदो
लक्ष्मीमनपगामिनीम ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूत गावो दास्योऽश्रवान विन्देयं पुरुषानहम॥१५॥

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम।
सूत्तम पंचदशर्च च श्रीकामः सतत जपेत ॥१६॥

इति श्री सुक्त्तम समाप्तम ॥